पूजा घर की उत्तर पूर्व दिशा देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए शुभ मानी जाती है
पूजा स्थान पर भगवान की मूर्ति का आकार बहुत बड़ा नहीं होना चाहिए. वहां पर छोटी मूर्तियां ही रखते हैं क्योंकि उनकी पूजा सरलतम विधि से हो जाती है. अलग-अलग देवी और देवताओं की मूर्तियों को रखने की दिशा भी अलग-अलग होती है. पूजा घर में भगवान की मूर्ति कितनी बड़ी होनी चाहिए? पूजा घर के वास्तु नियम क्या हैं।
पूजा घर की मूर्तियों के लिए वास्तु नियम
वास्तु और पूजा के नियमों के अनुसार, पूजा घर में भगवान की मूर्ति 1 अंगुल से लेकर 12 अंगुल तक हो सकती है. कहीं-कहीं पर 20 अंगुल की मूर्ति का भी प्रमाण मिलता है लेकिन सर्वमान्य 12 अंगुल तक ही है. पूजा घर में इससे बड़ी मूर्तियों की पूजा करने में कई नियमों का पालन करना जरूरी है, जो सामान्य जन के लिए जटिल प्रकिया हो जाती है. उसमें छोटी सी भी गलती अशुभ फलदायी हो सकती है।
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वास्तु के अनुसार, पूजा घर की उत्तर पूर्व दिशा देवी-देवताओं की मूर्तियों को रखने के लिए शुभ मानी जाती है. हनुमान जी की मूर्ति उत्तर पूर्व दिशा में रखें. बजरंगबली की मूर्ति को कभी भी दक्षिण पूर्व दिशा में नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे बुरा प्रभाव हमारे भर और जीवन पर पड़ता है।
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ऐसे ही मां दुर्गा, गणेश जी, कुबेर आदि की मूर्तियों को उत्तर दिशा में रखना चाहिए ताकि उनका मुख दक्षिणा दिशा में रहे।
यदि आप पूजा घर में शिवलिंग रखना चाहते हैं तो शिवलिंग का आकार भी छोटा होना चाहिए. उसे पूजा घर के उत्तरी हिस्से में स्थापित करना चाहिए।
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पूजा घर में भगवान विष्णु, ब्रह्मा, महेश, सूर्य, इंद्र आदि देवों की मूर्ति पूर्व दिशा में स्थापित करते हैं, ताकि उनका मुख पश्चिम की ओर हो. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पूजा घर में कभी भी खंडित और कांतिहीन मूर्तियों की न रखें. नई मूर्तियों को खरीदते समय उसकी बनावट का ध्यान रखना चाहिए. सुंदर मूर्तियों को ही खरीदना चाहिए. तांबा, अष्टधातु, चांदी, सोने, मिट्टी, पत्थर, लकड़ी से बनी मूर्तियों को ही पूजा के लिए उपयोग में लाना चाहिए।
पूजा घर के अंदर कभी भी रौद्र रूप वाली मूर्तियों को न स्थापित करें. मान्यता है कि उससे निकलने वाली ऊर्जा से नकारात्मक असर हो सकता है. इस वजह से तांडव करते हुए शिव जी की मूर्ति नहीं रखते हैं. इसके अलावा शनि देव, काल भैरव की मूर्ति भी नहीं रखते हैं. भैरव के बटुक स्वरूप को रख सकते हैं, वह उनका सौम्य स्वरूप होता है।