Pankhiya Beans: पंखिया बीन्स की खेती कर चंद समय में किसान बन जायेगे अमीर, जाने पूरी डिटेल्स…

By Alok Gaykwad

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Pankhiya Beans: पंखिया बीन्स की खेती कर चंद समय में किसान बन जायेगे अमीर, जाने पूरी डिटेल्स, अधिक आमदनी कम समय में कमाने के लिए भारतीय किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर गैर-पारंपरिक खेती में हाथ आजमा रहे हैं और उसमें सफल भी हो रहे हैं। खाद्यान्न उत्पादन पर ध्यान देने से उनकी आय में काफी इजाफा हो रहा है। देश के ज्यादातर किसान पंखिया बीन्स की खेती कर रहे हैं, जो एक नकदी फसल है और यह भी आम बीन्स की प्रजातियों से काफी अलग है। इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं।

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फलियां फसलों में शामिल होती हैं, इसकी फलियों का इस्तेमाल सब्जी के लिए ज्यादा किया जाता है। इसके फल, फूल, पत्तियां, तना, बीज और जड़ें भी खाई जा सकती हैं। पंखिया बीन्स में प्रोटीन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कार्बोहाइड्रेट, वसा, आयरन, सल्फर, खनिज, पोटेशियम, कैलोरी और फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे बाजार में इनकी हमेशा मांग रहती है।

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पंखिया बीन्स की उन्नत किस्में

भारत में अभी तक पंखिया बीन्स की ज्यादा किस्में विकसित नहीं की गई हैं, लेकिन देश में सबसे लोकप्रिय किस्म RMBWB-1 है। इसके अलावा, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी पंखिया बीन्स की एक नई किस्म पर काम कर रहा है।

उपयुक्त मिट्टी और खेत की तैयारी

पंखिया बीन्स की बुवाई के लिए रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ अच्छे हों, सबसे उपयुक्त मानी जाती है। अत्यधिक क्षारीय और अम्लीय मिट्टी इस फसल को लगाने में बाधा है। इसकी बुवाई के लिए किसानों को खेत की जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।

पंखिया बीन्स की बुवाई

पंखिया बीन्स की बुवाई के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर खेत में 20 से 30 किलो बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई से पहले किसानों को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या थिरम प्रति किलोग्राम की दर से बीजों का उपचार करना चाहिए। बता दें, इस बीन्स की बुवाई साल में दो बार की जाती है। इसकी बुवाई के लिए ऊঁची क्यारियां तैयार की जाती हैं और उनकी लाइनों की लंबाई 1 से 1.5 मीटर रखी जाती है। जबकि एक पौधे के बीच की दूरी 1.5 से 2 फीट रखनी होती है। इसके बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है।

सहारा प्रदान करना

पंखिया बीन्स की फलियां अन्य किस्मों की तुलना में काफी लंबी और मुलायम होती हैं, जिसके कारण मिट्टी भी इसके फल को प्रभावित करती है। किसान अच्छी पैदावार लेने के लिए इसके पौधों को सहारा दे सकते हैं, जिससे पौधों को अच्छे फल लगें और इनकी ग्रोथ भी सही तरीके से हो। किसानों को इस पौधे की बेलों को बांस की खपच्ची के सहारे चढ़ाना चाहिए।

खाद और उर्वरक

पंखिया बीन्स के खेतों में किसान जैविक खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं। गाय के गोबर से बनी लगभग 10 से 15 टन सड़ी हुई खाद का इस्तेमाल इसके एक हेक्टेयर खेत में किया जाता है। किसान इसकी फसल के साथ 20 किलो नीम की खली और 50 किलो कैस्टर की खली भी बो सकते हैं।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

किसानों को इसकी खेत की सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए। वहीं, बारिश के मौसम में इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। फूल और फलियां लगने के दौरान इसके पौधे में नमी बनाए रखनी होती है, जिसके लिए सिंचाई की जाती है। इसके अलावा, फसल से अच्छी पैदावार लेने