पहाड़ों में मिलने वाली ये अनोखी घास त्वचा रोगों के साथ करेंगी तनाव दूर, जाने पूरी जानकरी…कुणजा पहाड़ों में आसानी से मिलने वाला एक ऐसा औषधीय पौधा है, जो अपनी खुशबू के लिए भी जाना जाता है. देखने में तो यह आम घास या खरपतवार जैसी ही लगती है, लेकिन इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुणों की वजह से यह बाकी पौधों से अलग खड़ी हो जाती है. इसमें मलेरिया रोधी गुण भी पाए जाते हैं. अगर आप इसके पत्तों का लेप अपने शरीर पर लगा लेते हैं, तो मच्छर आपके आसपास नहीं भटकेंगे. वहीं, कीड़े-मकोड़े भी इस पौधे को ज्यादा पसंद नहीं करते. यह पौधा कई अन्य बीमारियों का भी रामबाण माना जाता है.
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औषधीय गुणों का खजाना है कुणजा
हाई एल्टीट्यूड प्लांट फिजियोलॉजी रिसर्च सेंटर में कार्यरत डॉ. जयदीप चैहान कहते हैं कि कुंज एक ऐसा औषधीय पौधा है, जो आसानी से उपलब्ध हो जाता है. इसे अलग-अलग जगहों पर कई नामों से जाना जाता है. मसलन, नेपाल में इसे टिटा पाती, कुमाऊं में पाती और गढ़वाल में इसे कुंज के नाम से जाना जाता है.
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खुशबू के साथ औषधीय गुणों का भी है भंडार
जानकारी देते हुए बताया गया है कि कुणजा में इसकी खुशबू के साथ-साथ औषधीय गुण भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. बताया जाता है कि यह बीजों के जरिए नहीं बल्कि राइजोम यानी जड़ों के जरिए फैलता है. यह अधिकतम दो से तीन मीटर ऊंचा होता है. इसमें किसी भी तरह का फूल नहीं आता है. यह एक सदाबहार और हरा-भरा रहने वाला पौधा है. इसे घर के आसपास लगाना शुभ माना जाता है. इसके पत्तों में कड़वाहट होती है. वहीं, कुंज में 11 प्रतिशत कपूर और सबिने कम्पाउंड पाया जाता है. इसके अलावा, 19 प्रतिशत मात्रा में बीटा ओजोन नामक रासायनिक यौगिक भी इस पौधे में पाया जाता है.
त्वचा रोगों के साथ तनाव दूर करने में भी कारगर
डॉ. जयदीप बताते हैं कि कुणजा में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण भी पाए जाते हैं, जो त्वचा रोगों को दूर करने में भी सक्षम है. इसे एंटीसेप्टिक की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है. सदियों से पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग बीमारियों से लड़ने के लिए कुंज का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. वहीं, इसे दिव्य पौधा भी कहा गया है. उत्तराखंड के हर धार्मिक कार्य में कुंज का इस्तेमाल किया जाता है. देवी-देवताओं की पूजा और अनुष्ठानों में कुंज का अपना ही महत्व है.