MP News: ” जब तक ब्राह्मण अपनी बेटी न दे…” आईएएस संतोष वर्मा के बयान पर बवाल, सपाक्स ने की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी की मांग

भोपाल: मध्य प्रदेश की नौकरशाही और सामाजिक संगठनों के बीच एक बार फिर जुबानी जंग तेज हो गई है। मप्र कैडर के आईएएस अधिकारी और अजाक्स (AJAKS) के नवनिर्वाचित अध्यक्ष संतोष वर्मा द्वारा आरक्षण और अंतरजातीय विवाह को लेकर दिए गए एक बयान ने सियासी पारा चढ़ा दिया है। इस बयान पर सपाक्स पार्टी (SAPAKS) ने तीखी आपत्ति जताते हुए अधिकारी के सामाजिक बहिष्कार और गिरफ्तारी की मांग कर दी है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, रविवार को भोपाल के डॉ. आंबेडकर मैदान में अजाक्स का प्रांतीय अधिवेशन आयोजित किया गया था। इस बैठक में आईएएस संतोष वर्मा को संगठन का नया प्रांतीय अध्यक्ष चुना गया। वर्तमान में वे किसान कल्याण एवं कृषि विभाग में उप सचिव के पद पर कार्यरत हैं। अध्यक्ष बनने के बाद मंच से संबोधित करते हुए वर्मा ने आरक्षण की वकालत करते हुए एक विवादास्पद उदाहरण दिया।
उन्होंने कहा, “समाज में जब तक रोटी-बेटी के रिश्ते कायम नहीं हो जाते, तब तक संघर्ष जारी रहेगा। जब तक कोई ब्राह्मण मेरे बेटे के लिए अपनी बेटी न दे दे, यानी संबंध न बना ले, तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए।” उनके इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही बहस छिड़ गई है।
सपाक्स की तीखी प्रतिक्रिया: ‘ऐसे अधिकारी का बहिष्कार हो’
आईएएस वर्मा के बयान पर सपाक्स पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और सेवानिवृत्त आईएएस डॉ. हीरालाल त्रिवेदी ने कड़ा एतराज जताया है। डॉ. त्रिवेदी ने कहा कि एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा ऐसा बयान देना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने गुस्से का इजहार करते हुए कहा, “मेरे पास शब्द नहीं हैं। ऐसे व्यक्ति का हर वर्ग द्वारा सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया जाना चाहिए। सरकार को तुरंत एक्शन लेते हुए इन्हें नौकरी से बाहर कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे व्यक्ति को सार्वजनिक पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।”
डॉ. त्रिवेदी यहीं नहीं रुके, उन्होंने मांग की है कि पुलिस को इस मामले में संज्ञान लेते हुए एफआईआर दर्ज करनी चाहिए और आईएएस वर्मा को गिरफ्तार करना चाहिए।
अजाक्स ने दी सफाई
दूसरी ओर, विवाद बढ़ता देख अजाक्स ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है। संगठन के प्रांतीय प्रवक्ता विजय शंकर श्रवण ने कहा कि अध्यक्ष संतोष वर्मा का उद्देश्य किसी की भावनाएं आहत करना नहीं था। उन्होंने केवल सामाजिक समरसता और जातिवाद उन्मूलन की दिशा में अपने विचार रखे थे। उनका आशय यह था कि जातिभेद खत्म करने के लिए समाज में रोटी-बेटी के संबंधों की स्वीकार्यता जरूरी है।
फिलहाल, इस बयानबाजी ने प्रदेश में आरक्षण और जातिगत समीकरणों की बहस को एक बार फिर हवा दे दी है। अब देखना यह होगा कि शासन इस मामले में क्या रुख अपनाता है।



