मटर की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड रहती है और लोग जमकर खरीददारी करते हैं। तो वजह साफ है कि यदि आप इसकी खेती करना शुरू कर देते हैं तो आप इससे बढ़िया मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। दलहनी सब्जियों में मटर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। मटर की खेती से जहां एक ओर कम समय में पैदावार प्राप्त की जा सकती है वहीं ये भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में भी सहायक है। मटर की खेती भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए भी की जाती है क्योकि मटर में राइजोबियम जीवाणु मौजूद होता है जो भूमि को उपजाऊ बनाने में सहायक होता है। मटर में अनेक प्रकार के पोषक तत्व प्रतिन, फ़ास्फ़ोरन, विटामिन और आयरन की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। तो आइये जानते हैं मटर की खेती करने की पूरी प्रोसेस।
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मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
मटर की खेती के लिए मटियार दोमट और दोमट भूमि सबसे उपयुक्त होती है। जिसका पीएच मान 6-7.5 होना चाहिए। इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि सब्जी वाली मटर की खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं मानी जाती है। समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु मटर की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। भारत में इसकी खेती रबी के मौसम में की जाती है। क्योकि ठंडी जलवायु में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा सर्दियों में गिरने वाले पाले को भी इसका पौधा आसानी से सहन कर लेता है।
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खेत की तैयारी
मटर की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, इसलिए खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है। इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। अच्छे अंकुरण के लिए मिट्टी में नमी होना जरुरी है।
बुवाई का तरीका
मटर की बुआई अक्टूबर- नवम्बर महीने तक कर लेनी चाहिए क्योकि यह सबसे उत्तम समय है। आपको बुआई से पहले बीजों का उपचार जरुर करना चाहिए तथा बुआई के समय बीज की मात्रा का विशेष ध्यान रखे। प्रति हेक्टेयर खेत की बुवाई के लिए करीबन 80 से 100 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है। इसकी बुवाई के लिए देशी हल जिसमें पोरा लगा हो या सीड ड्रिल से 30 सेंमी. की दूरी पर बुआई करनी चाहिए। बीज की गहराई 5-7 सेंमी. रखनी चाहिए जो मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है।
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पौधों की सिंचाई
शुरुआत में मिट्टी में नमी और शीत ऋतु की वर्षा के आधार पर 1-2 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई फूल आने के समय और दूसरी सिंचाई फलियाँ बनने के समय करनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हल्की सिंचाई करें और फसल में पानी ठहरा न रहे।
फसल की पैदावार
मटर के पौधे बीज रोपाई के 130 से 140 दिन पश्चात् कटाई के लिए तैयार हो जाते है। पौधों की कटाई के बाद उन्हें सूखा लिया जाता है, जिसके बाद सूखे दानो को फलियों से निकाल लेते है। दानो को निकालने के लिए मशीन का भी इस्तेमाल कर सकते है। साफ दानों को 3-4 दिन धूप में सुखाकर उनको भंडारण पात्रों (बिन) में करना चाहिये।