मक्का की खेती कर मालामाल हो जायेगे किसान, जाने खेती करने का सरल और सही तरीका…

By Alok Gaykwad

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मक्का की खेती कर मालामाल हो जायेगे किसान, जाने खेती करने का सरल और सही तरीका, हे किसान भाइयों, जैसा कि आप जानते हैं खरीफ की फसल में अक्सर धान की खेती को ही तरजीह दी जाती है. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं कि अगर आप सही तरीके अपनाएं तो मक्का की खेती धान से ज्यादा मुनाफा दे सकती है. दरअसल, मक्का कम पानी में भी अच्छी पैदावार देता है. धान की फसल को भारी बारिश की जरूरत होती है, वहीं मक्का सूखा सहने वाला वाला बीज है. कम पानी, कम लागत और अच्छा दाम मिलने की संभावनाओं के कारण खरीफ में मक्का की खेती धान से ज्यादा फायदेमंद हो सकती है. सही तरीकों और समय का पालन करके किसान मक्का की खेती से अधिक उत्पादन और लाभ कमा सकते हैं.

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मक्का की खेती के फायदे

  • कम पानी की जरूरत: मक्का को धान के मुकाबले काफी कम पानी की जरूरत होती है. एक हेक्टेयर में धान को 1000-1200 मिमी पानी की जरूरत होती है, जबकि मक्का को सिर्फ 627-628 मिमी पानी ही चाहिए.
  • कम लागत: धान के मुकाबले मक्का की खेती में कम लागत लगती है. इसकी वजह है मक्का की कम अवधि वाली फसल होना. जल्दी तैयार होने वाली फसल होने के कारण इसमें कम कीट नियंत्रण की जरूरत होती है.
  • अच्छी कीमत: पिछले कुछ सालों में मक्के के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई है. 2010-11 से 2020-21 के बीच हर साल औसतन 7 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हुई है.
  • जलभराव वाली जमीन के लिए उपयुक्त नहीं: जहां जलभराव की समस्या रहती है वहां मक्का की खेती नहीं करनी चाहिए. मक्का की खेती के लिए रेतीली-चिकनी मिट्टी से लेकर गादयुक्त चिकनी मिट्टी अच्छी मानी जाती है.

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मक्का की खेती का सही तरीका

  • बुवाई का समय: मक्का की बुवाई का सबसे अच्छा समय 20 जून से जुलाई के अंत तक होता है. हालांकि, ये मानसून की शुरुआत पर भी निर्भर करता है.
  • मिट्टी: मक्का के बीजों के अच्छे से अंकुरित होने और जड़ों को फैलने के लिए मिट्टी भुरभुरी, महीन और समतल होनी चाहिए. जलभराव की संभावना वाली जगहों पर जल्दी बुवाई करनी चाहिए ताकि पौधे पानी में गिरने से बच सकें.
  • खाद और उर्वरक: मक्के को सही मात्रा में खाद और उर्वरक देने से पौधे पोषित रहते हैं और उत्पादन बढ़ता है. लंबे समय वाली किस्मों के लिए 100 किलो यूरिया, 55 किलो डीएपी, 160 किलो MOP और 10 किलो जिंक की जरूरत होती है. वहीं कम अवधि वाली किस्मों के लिए 75 किलो यूरिया, 27 किलो डीएपी, 80 किलो MOP और 10 किलो जिंक की जरूरत होती है.