दलहनी फसलों में मसूर का भी अपना अलग एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक महत्तवपूर्ण प्रोटीन युक्त दालों वाली फसल है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व बिहार में मुखय रूप से मसूर की खेती की जाती है। । यह दाल गहरी संतरी, और संतरी पीले रंग की होती है। मसूर की खेती सफलतापूर्वक करके काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आइये जानते हैं मसूर की खेती करने की पूरी प्रोसेस।
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मसूर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
मसूर को मिट्टी की सभी किस्मों में उगाया जा सकता है। मसूर की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। इसके अलावा लाल लेटेराइट मिट्टी में भी इसकी खेती अच्छी प्रकार से की जा रही है। मिट्टी भुरभुरी और नदीन रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक समाज गहराई में बोये जा सकें। मयूर की अच्छी फसल के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.8-7.5 के बीच होना चाहिए।
मसूर की खेती के लिए जलवायु
पौधों की वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु, परंतु फसल पकने के समय उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। मसूर की फसल वृद्धि के लिए 18 से 30 डिग्री सेेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। इसके उत्पादन के लिए वे क्षेत्र अच्छे रहते हैं, जहां 80-100 सेंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती है।
खेत की तैयारी
हल्की मिट्टी में सीड बैड तैयार करने के लिए कम जोताई की जरुरत होती है। भारी मिट्टी में एक गहरी जोताई के बाद 3-4 हैरो से क्रॉस जोताई करनी चाहिए। मृदा नमी संरक्षण एवं भूमि समतलीकरण हेतु प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं। ज़मीन को समतल करने के लिए 2-3 जोताई पर्याप्त होती है। पानी के उचित वितरण के लिए ज़मीन समतल होनी चाहिए। बीजों की बिजाई के समय खेत में उचित नमी मौजूद होनी चाहिए।
बीज की मात्रा
30-45 कि.ग्रा प्रति है.(छोटे दानों वाली प्रजातियों के लिए), 45-60 कि.ग्रा प्रति है. (बड़े दानों वाली प्रजातियों के लिए) और 60-80 कि.ग्रा प्रति हे. (ताल क्षेत्र के लिए)
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बुवाई का तरीका
बीजों को मध्य अक्तूबर से लेकर नवंबर के पहले पखवाड़े में बोया जाता है। मसूर की बुवाई सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल से करना चाहिये। पंक्तियों में बीज 22 सैं.मी. की दूरी पर बीजने चाहिए और देरी से बिजाई करने की हालतों में पंक्तियों की दूरी कम करके 20 सैं.मी. कर देनी चाहिए। बीज को 4-5 सेमी की गहराई पर बोयें।
सिंचाई
मसूर में सूखा सहन करने की क्षमता होती है। आमतौर पर सिंचाई नहीं की जाती है, फिर भी सिंचित क्षेत्रों में 1 से 2 सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है। बिजाई के 4 सप्ताह बाद एक सिंचाई जरूर करनी चाहिए और दूसरी फूल निकलने की अवस्था में करनी चाहिए।
फसल की कटाई
मसूर की फसल 110 से 140 दिन में पक जाती है। जब 70-80 प्रतिशत फलियॉं पक जाएं, हंसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए। फिर बंडल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं। उन्नत खेती कर बरानी क्षेत्र में 8-10 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्र में 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज आसानी से प्राप्त की जा सकती है।