Lasoda ke fayde or upyog: जंगल का रसगुल्ला कहलाता है ये औषधि गुनी फल, मुश्किल से मिलता है इन दो माह में, जाने पूरी जानकारी…प्रकृति की गोद में औषधियों का खजाना छुपा है, बस उसे पहचानने की जरूरत है। साल में सिर्फ दो महीने यानि मई और जून में मिलने वाला एक जंगली फल इसी श्रृंखला का हिस्सा है। इतना ही नहीं, सिर्फ ये फल ही नहीं बल्कि पूरा पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। तो चलिए जानते हैं इसके फायदों के बारे में…
बहुवार या लसोड़ा का पेड़ अक्सर ग्रामीण इलाकों या घने जंगलों में देखने को मिलता है। यह भले ही जंगली पेड़ है, लेकिन इसका फल कमाल का होता है। आयुर्वेद में इस पूरे पेड़ का इस्तेमाल कई बीमारियों का रामबाण इलाज बनाने के लिए किया जाता है। खास बात ये है कि बुंदेलखंड क्षेत्र में लसोड़े के फल को रसगुल्ला के नाम से जाना जाता है।
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लसोड़े के फल को ‘गोंदी’ और ‘निसोरा’ के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसका नाम ‘श्लेष्मताक’ है। आंवले जैसा दिखने वाला यह फल जोड़ों के दर्द को जड़ से खत्म करने में कारगर है। लसोड़े को आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना जाता है, इसके पेड़ की छाल, फल और हरी पत्तियों में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए लाभदायक होते हैं।
आयुर्वेद डॉक्टर डॉ. अभिषेक खरे ने लोकल 18 को बताया कि लसोड़ा का पेड़ अब कम ही देखने को मिलता है, लेकिन आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। इसके पत्तों का स्वाद पान के पत्ते जैसा होता है, जो मुंह का स्वाद बदल देता है। लसोड़ा का फल हूबहू आंवले जैसा दिखता है, लेकिन खाने में खट्टा-मीठा होता है। इसमें फाइबर, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, वसा, आयरन, प्रोटीन, फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं।
डॉक्टर ने आगे बताया कि छोटा दिखने वाला लसोड़ा का फल पोषक तत्वों का भंडार है। यह कई बीमारियों की दवा है। इसके पत्तों और लकड़ी से कई दवाइयां बनाई जाती हैं। इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि इसके लकड़ी को घर में रखने से शांति बनी रहती है। यह फल कच्चा होने पर हरे रंग का होता है और पक जाने पर हल्का पीला हो जाता है।