मसाला फसलों में जीरे का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान समय में जीरे के भाव में तेजी से उछाल आया है। छौंक लगाना हो या सब्जी का स्वाद बढ़ाना हो, जीरा हर जगह काम आता है। मसालों में जीरे की मांग सबसे अधिक होती है। जीरा में कई औषधीय गुण होते हैं। जीरा पेट की कई समस्याओं के लिए रामबाण औषधि से कम नहीं है। आप भी जीरे की खेती कर हो सकते है मालामाल। तो आइये जानते है जीरे की खेती करने की पूरी प्रोसेस।
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जीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
जीरे की फसल बलुई दोमट तथा दोमट भूमि अच्छी होती है l खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये। जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 25 से 30 डिग्री उपयुक्त माना गया है।
खेत की तैयारी
खेत की तैयारी के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई तथा देशी हल या हैरो से दो या तीन उथली जुताई करके पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट की क्यारी बनाएं।
बुवाई का तरीका
जीरे की बुवाई 1 से 25 नवंबर के मध्य कर देनी चाहिये l बुवाई के लिए 2 किलो बीज प्रति बीघा के हिसाब से लेकर 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो बीज को उपचारित करके ही बुवाई करें। बुवाई हमेशा 30 सेमी दूरी से कतारों में करें। कतारों में बुवाई सीड ड्रिल से आसानी से की जा सकती है।
सिंचाई कब करें
जीरे के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है। जीरे की बुवाई के तुरन्त पश्चात एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिये l इसके बाद खेत की दूसरी सिंचाई बुवाई से 10 से 15 दिनों के अन्तराल में एवं तीसरी सिंचाई 20 से 25 दिन पर करनी चाहिए। ध्यान रहे दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई न करें l अन्यथा बीज हल्का बनता है l सिंचाई के लिए फव्वारा विधि का प्रयोग करना उत्तम है l
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खरपतवार नियंत्रण
जीरे की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा 1.0 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिडक़ाव करना चाहिए। इसके 20 दिन बाद जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कर देनी चाहिए।
फसल की कटाई
सामान्य रूप से जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाये तथा फसल पूरी पक जाये तो तुरन्त कटाई कर लेनी चाहिय l पौधों को अच्छी प्रकार से सुखाकर थ्रेसर से मँड़ाई कर दाना अलग कर लेना चाहिये l दाने को अच्छे प्रकार से सुखाकर साफ बोरों में भंडारित कर लिया जाना चाहिये।