आंवला में कई प्रकार के गुण होते हैं, जिन्हें आयुर्वेद से लेकर साइंस भी मान्यता देती है। आंवला में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है। आंवला का सेवन करना इंसान को कई तरह के रोगों से बचाता है। इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन ई सहित कई तरह के पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। इसका स्वाद कसैला होता है। आंवले से अचार, मुरब्बा, ज्यूस, कैंडी आदि उत्पाद बनाए जाते हैं। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है, भोजन पचाने में मददगार होता है, यह डायबिटीज को कंट्रोल में रखता है, खून का प्रवाह अच्छे से बनाए रखता है, सूजन संबंधी बीमारियों में फायदेमंद और बालों को काला घना बनाने में मदगार होता है। वहीं बाजार में भी इसके अच्छे भाव मिल जाते हैं। इस तरह इसकी खेती करके किसान काफी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। तो आइये आज हम आपको बताएँगे आंवले की खेती करने की पूरी प्रोसेस।
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आंवले की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी और जलवायु
आंवले की खेती हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। इसके सख्त होने की वजह से इसे मिट्टी की हर किस्म में उगाया जा सकता है। इसे हल्की तेजाबी और नमकीन और चूने वाली मिट्टी में उगाया जा सकता है। अगर इसकी खेती बढ़िया जल निकास वाली और उपजाऊ-दोमट मिट्टी में की जाती है तो यह अच्छी पैदावार देती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5-9.5 होना चाहिए।
आंवले की उन्नत किस्में
आंवले की उन्नत किस्मों की ही बुवाई करनी चाहिए ताकि फलों का आकार बड़ा प्राप्त हो। आंवले की उन्नत किस्म इस प्रकार है- कंचन (एन ए-4), नरेन्द्र आँवला-6, नरेन्द्र आँवला-10, कृष्णा (एन.ए.-5),
बनारसी, चकईया, फ्रान्सिस आदि।
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खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका
आंवले की खेती जुलाई से सितंबर के महीने में की जाती है। आंवले की खेती के लिए सबसे पहले गड़ढे तैयार कर लें। गड्ढों की खुदाई 10 फीट x 10 फीट या 10 फीट x 15 फीट पर करनी चाहिए। पौधा लगाने के लिए 1 घन मीटर आकर के गड्ढे खोद लेना चाहिए। इसके बाद गड्ढों को 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि इसमें धूप लग सकें जिससे हानिकारक जीवाणु धूप के संपर्क में आकर नष्ट हो जाएं। इसके बाद प्रत्येक गड्ढे खाद डाल देना चाहिए। फिर इन गड्ढों में पानी भर देना चाहिए। वहीं गड्ढे भराई के 15 से 20 दिन बाद ही पौधे का रोपण किया जाना चाहिए।
खेत की सिंचाई
गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के फासले पर करें और सर्दियों में अक्तूबर दिसंबर के महीने में हर रोज़ चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फूल निकलने के समय सिंचाई ना करें। सिंचाई के लिए खारे पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
फसल की कटाई
बिजाई से करीब 7-8 साल बाद पौधे पैदावार देना शुरू कर देते है। जब फूल हरे रंग के हो जाएं और इनमें विटामिन सी की अधिक मात्रा हो जाए तो फरवरी के महीने में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को ज़ोर-ज़ोर से हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का प्रयोग किया जाता है।