मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में घूमने के लिए कई खूबसूरत जगहें हैं. इनमें सबसे खास हैं खजुराहो के मंदिर. इसके अलावा गुलगंज का किला अपने आप में ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है. इस किले को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं.
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गुलगंज का किला: बुंदेली स्थापत्य कला का नायाब उदाहरण
गुलगंज का किला, छतरपुर मुख्यालय से 39 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 86 पर अनगौर के पास स्थित है. गुलगंज पहाड़ी की चोटी पर स्थित 400 साल पुराना किला है. ये किला बुंदेली स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है. मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा संरक्षित ये किला बिजावर के महाराजा द्वारा बनवाया गया था.
बिजावर से मात्र साढे 14 किलोमीटर दूर स्थित इस किले का निर्माण रक्षा शैली पर आधारित है. मुख्य किला दो आँगन में विभाजित है. किले में दो द्वार भी हैं. किले में कई भूमिगत कोठर और बाहर निकलने के लिए एक गुप्त सुरंग भी है.
गुलगंज का किला राज्य के उत्तरी भाग में स्थित है जो अपने विरासत स्मारकों, किलों, महलों, मंदिरों और स्मारकों के लिए लोकप्रिय है. ये एक पहाड़ी की चोटी पर बना किला है, जो लंबी दूरी से दिखाई देता है. इसका विकास बुंदेला क्षेत्र में बुंदेला शासकों के शासनकाल के दौरान बुंदेली वास्तुकला में हुआ था. इसे 18वीं शताब्दी के आसपास शासक सावंत सिंह ने बनवाया था. ऐसा माना जाता है कि इसका नाम उनकी पत्नी गुल बाई के नाम से पड़ा है.
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गुलगंज का किला और रानी गुलबाई की कहानी
लोगों का कहना है कि बिजावर महाराज ने अपना खजाना इस किले में सुरक्षित छुपाया था. राजा सावंत सिंह ने अपनी पत्नी गुलबाई को ये गांव और किला उपहार स्वरूप दिया था. बाद में इसका नाम गुलबाई के नाम पर ही गुलगंज पड़ गया. आज भी माना जाता है कि गुलबाई की आत्मा इस किले के खजाने की रक्षा करती है और किसी की बुरी नजर किले पर नहीं पड़ने देती.