अश्वगंधा की खेती कर किसान कमा सकते लाखों रूपये का फायदा, जानिए अश्वगंधा की खेती का सही तरीका, अश्वगंधा से सभी परिचित हैं, मुख्यतः यह शरीर की इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने वाली औषधीय फसल है। यह नर्वस सिस्टम को मजबूत करती है यानि इससे लकवा, रीढ़ की हड्डी में दिक्कत आदि बिमारियों में इसका उपयोग किया जाता है। च्यवनप्राश जैसे कई अवलेहों में भी यह पड़ती है।
इस औषधीय फसल की खेती साल में दो बार हो सकती है., फरवरी-मार्च-अप्रैल में और अगस्त-सितंबर-अक्टूबर में। यह 5 माही फसल है, यानि इसकी हार्वेस्टिंग का समय जुलाई-अगस्त-सितम्बर और फरवरी-मार्च-अप्रैल तक है। फिर भी इसे खरीफ की फसल के साथ ही बारिश में बोया जाता है।
अश्वगंधा की प्रमुख किश्मे
इसकी कई वैराइटियां होती हैं, जंगली, जवाहर, पोषिता, पुष्टि और नागौरी अश्वगंधा और ये इसी क्रम में श्रेष्ठ होती जाती हैं। जंगली अश्वगंधा अपने खेतों, नालों बीहड़ों में अपने आप उगती है, पर इसका झाड़ बड़ा और जड़ें छोटी होती हैं। जबकि बाकी वैराइटियों में क्रमशः झाड़ छोटा और जड़ें बड़ी होती चलती हैं। विभिन्न क्षेत्रों और मिट्टी के अनुसार अलग अलग वैराइटियों की सिफारिश की जाती है, इसकी खेती के लिए।
जानिए बिजाई की प्रोसेस
इसका बीज बहुत छोटा और चपटा सा होता है। इसके बीज छोटे होने के कारण इसकी बिजाई गहरी नहीं की जा सकती है, बल्कि जमीन में एक सेमी से गहरा ये बीज नहीं जाना चाहिए। इसकी बिजाई छिड़कवा विधि से ही की जाती है।सितम्बर में जब कभी बारिश हो जाए, तब पहले खेत को हैरो से या मोरप्लाऊ से जुताई करे ताकि खेत की खरपतवार खत्म हो जाए और फिर बिना मिट्टी के सूखने का इंतजार किए इसके बीजों में 5 गुना मिट्टी मिला कर इसको खेत में छिड़क दिया जाता है।
जानिए अश्वगंधा की खेती में देखरेख की पूरी प्रोसेस
जब पौधे निकल आये तब पानी देने का नंबर एक-डेढ़ महीने के बाद आता है। बीच में बारिश हो जाए तो पानी नहीं देना चाहिए। अश्वगंधा या सभी जड़ कंदो वाली फसलों को पानी तरसा तरसा कर ही दिया जाता है ताकि इसकी जड़ो का अच्छे से विकास हो। खाद के लिए शुरू में गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद डाल दी जाती है। बाकि इसमें अलग से किसी भी प्रकार के खाद को देने की आवश्यकता नहीं होती है। इस फसल में ना कोई बीमारी आती है, ना इसे कोई पशु खाता है, ना ये अतिरिक्त खाद पानी मांगती है। जनवरी बाद ये कटने लायक हो जाती है। अश्वगंधा फसल के सभी भाग बिकते है, पर इसकी जड़ें ही मुख्य घटक है। बिकने के लिए जनवरी-फरवरी या मार्च में जब एक बारिश हो जाए ( या फव्वारा चला लें) इससे जमीन गीली हो जाती है, तब इसकी जड़ें मूली की तरह आराम से उखड़ जाती हैं।
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जानिए अश्वगंधा की कटाई और मुनाफे के बारे में
इन जड़ों को कुल्हाड़ी से ऊपरी तने से अलग कर देते हैं, साथ ही जड़ को भी जो पूंछ वाला हिस्सा होता है, उसको भी काट देते हैं। यानि जड़ के भी 2-3 पार्ट कर लेते हैं, जिनकी ग्रेडिंग करते हैं और दोनों तीनों तरह की जड़ों को अलग अलग इक्ट्ठा करते हैं, सूखा कर। उधर अश्वगंधा के बचे ऊपरी झाड़ को थ्रेशर से निकलवा लेते हैं, इससे बीज अलग मिल जाता है और बाकी बचे भूसे को भी बोरियों में भर लेते हैं। अब जड़ें, भूसा और बीज तीनों ही बिकते हैं। इसकी जड़ों की रेट 150-200 रूपये प्रति किलो और झाड़ 15 रूपये किलो तक बिक जाता है।