कलौंजी की खेती से किसान कम समय में कमा सकते है अच्छा मुनाफा, जानिए कलौंजी की खेती की पूरी प्रोसेस, हमारे देश में कई प्रकार के औषधीय पौधे पाए जाते है जिसमे से कुछ औषधीय पौधो की फ़सलों की खेती की जाती है जैसे- अश्वगंधा, सहजन, अकरकरा, अदरक, कलौंजी, लेमनग्रास, शतावरी इत्यादि. आज हम कलौंजी की खेती के बारे में बात कर रहे हैं. कलौंजी न सिर्फ़ औषधीय फ़सल है बल्कि मसाला फ़सल भी है।
किसान कलौंजी की खेती कैसे कर सकते हैं, उन्नत क़िस्में कौन-कौन सी हैं, जलवायु, फ़सल संरक्षण इत्यादि विषयों पर इस लेख बताया गया है। इसलिए कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) से अच्छे उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाने के लिए इस लेख को ध्यान से पड़े।
कलौंजी की उन्नत किश्मे
कलौंजी की खेती के लिए उन्नत क़िस्में- एन.आर.सी.एस.एस.एन.-1, अजमेर कलौंजी, एन.एस.-44, एन.एस.-32, आजाद कलौंजी, कालाजीरा, पंत कृष्णा और राजेंद्र श्याम हैं. कलौंजी की फ़सल क़िस्मों के लिहाज से औसतन 135 और अधिकतम 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
कलौंजी की खेती के लिए भूमि और जलवायु
कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, हालांकि इसे दूसरी प्रकार की मृदाओं में भी उगाया जा सकता है। खेत की मिट्टी भुरभरी होनी चाहिए और उसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए नहीं तो फ़सल सड़ जाएगी. भारत के उत्तरी हिस्से में कलौंजी की खेती रबी फ़सल के तौर पर होती है।
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जानिए बुवाई की पूरी प्रोसेस
किसानों को चाहिए कि बुआई से पहले अपने खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लें इससे सिंचाई के बाद बीज का जमाव एक समान होता है. ऐसा करने से फ़सल अच्छी होती है. खेत में दीमक हो तो क्विनॉलफॉस 1.5% या मिथाइल पैराथियान 2% में से किसी एक को 25 किग्रा. प्रति हैक्टर की दर से अंतिम जुताई के समय खेत बिखेरें. इसकी बुआई कतार विधि से करें, जिसमें बीज की बुआई 30 सेमी की दूरी पर बनी कतारों में करनी चाहिए. कतारों की गहराई 2 सेमी से ज़्यादा न हो इस बात का विशेष ध्यान दें।
जानिए फसल में उर्वरक का उपयोग
खेत की तैयारी के दौरान ही मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद/कम्पोस्ट को 10 क्विंटल/हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह उसमें मिला देना चाहिए. भूमि परीक्षण के बाद उसमें उचित पोषक तत्वों जैसे- नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस, पोटाश की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए।
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जानिए उत्पादन के बारे में
कलौंजी की खेती में उत्पादन की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 10 से 15 क्विंटल उपज मिल जाती है।