Chanakya Niti: जल्दबाजी में फैसले लेना पड़ सकता है महँगा, चाणक्य नीति से जानिए सफलता का मूल मंत्र

By charpesuraj4@gmail.com

Published on:

Follow Us

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती हैं. उनकी एक नीति में बताया गया है कि जल्दबाजी या भावनाओं में बहकर फैसले लेने वाले व्यक्ति को सिवाय पछतावे के कुछ नहीं मिलता. आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य इस कथन के पीछे क्या मतलब रखते हैं.

यह भी पढ़े- S अक्षर से नाम वाले होते है मिलनसार और आकर्षक, जानिए कैसा होता है S अक्षर से नाम वालों का स्वभाव

चाणक्य एक महान विद्वान थे. उनकी कही हुई कई बातें आज भी लोगों के लिए सत्य साबित होती हैं. वो न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में पारंगत थे बल्कि उन्हें वेदों, शास्त्रों और अर्थव्यवस्था का भी गहरा ज्ञान था. चाणक्य अपने नीति-मूल्यों के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने अपनी नीतियों के माध्यम से मानव हित और कल्याण की बात की है. आज हम आपको चाणक्य की ऐसी ही एक नीति के बारे में बता रहे हैं, जिसमें उन्होंने बताया है कि ज़िन्दगी में कुछ फैसले बहुत सोच-समझकर लेने चाहिए. आखिर क्या है इस बात के पीछे की चाणक्य नीति, आइए जानते हैं.

चाणक्य नीति: कर्म और बुद्धि का संबंध

अपनी नीति में कर्म के बारे में बताते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को जो कर्म मिलता है, वह उसके द्वारा किए गए कर्मों पर ही निर्भर करता है. मनुष्य की बुद्धि भी उसके कर्मों के अनुसार ही काम करती है. फिर भी, कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई भी कार्य शुरू नहीं करता है. जल्दबाजी में किया गया कोई भी कार्य असफलता का कारण बन सकता है. अगर आप बिना सोचे-समझे कोई भी कार्य करते हैं, तो आपको सफलता नहीं मिलेगी.

कोई भी कार्य करने से पहले रखें ध्यान

चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल मिलता है. उनका कहना है कि हर कार्य को करने से पहले अच्छी तरह से सोच-समझकर उसका मूल्यांकन करना चाहिए और उसके बाद ही उस कार्य को करना चाहिए. कुल मिलाकर, वो ये कहते हैं कि बिना सोचे-समझे अचानक से कोई भी कार्य शुरू करना सही नहीं है. हम जो भी कार्य करने जा रहे हैं, उसके बारे में पहले गंभीरता से सोचें और उचित तैयारी के साथ ही उस कार्य को करना अच्छा होता है.

जीवन में फैसले लेना महत्वपूर्ण है, लेकिन उसके लिए विचार-विमर्श भी जरूरी होता है. जो लोग जल्दबाजी में फैसले लेते हैं, उन्हें हर कदम पर निराशा का सामना करना पड़ता है, जबकि कोई भी कार्य किसी ठीक योजना बनाकर किया जाता है, तो मन ये स्वीकार कर लेता है कि मैं ये कार्य क्यों कर रहा हूँ और इसका क्या परिणाम होगा. एक बार जब मन किसी चीज को स्वीकार कर लेता है, तो फिर चाहे व्यक्ति को कितनी भी बार निराशा का सामना क्यों न करना पड़े, उसका हौसला टूटता नहीं है. ये भी कहा जाता है कि हार वही है जब मन हार जाता है, जीत वही है जब मन जीत जाता है.