कृषि

Bakari Palan: जीरो रुपये खर्च और कमाई लाखों में, किसानों के लिए चलता-फिरता एटीएम बना बकरी पालन

खेती-किसानी में अनिश्चितता बनी रहती है, कभी बारिश तो कभी सूखा। ऐसे में पशुपालन किसानों के लिए एक मजबूत सहारा बनकर उभर रहा है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के बस्तर से एक ऐसी सफलता की कहानी सामने आई है, जो बेतूल जिले के किसानों के लिए भी प्रेरणादायक हो सकती है। वहां के किसान ‘जीरो बजट’ यानी बिना किसी खर्च के बकरी पालन (Goat Farming) कर लाखों रुपये कमा रहे हैं।

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क्या है जीरो खर्च वाला मॉडल?

आमतौर पर पशुपालन में चारे और रखरखाव पर मोटा खर्च आता है, लेकिन बस्तर के किसानों ने देसी तरीका अपनाया है। वे बकरियों को बाड़े में बांधकर रखने के बजाय खुले में चराते हैं। बकरियां जंगल, खेत की मेड़ और खुले मैदानों में उगने वाली झाड़ियों-पत्तियों को खाकर पलती हैं। इससे चारे (Feed) का खर्च पूरी तरह बच जाता है। बस्तर के किसान इसे ‘बिना लागत का मुनाफा’ कहते हैं।

देसी नस्ल, कम बीमारी और ज्यादा दाम

रिपोर्ट के मुताबिक, किसान मुख्य रूप से देसी नस्ल की बकरियों का पालन कर रहे हैं। इन बकरियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) बहुत अच्छी होती है, जिससे दवाइयों का खर्च भी ना के बराबर होता है। स्थानीय हाट-बाजारों में इन देसी बकरियों की मांग बहुत ज्यादा है। 6 महीने से 1 साल के भीतर एक बकरी 10 से 15 हजार रुपये तक में आसानी से बिक जाती है।

किसानों का एटीएम है बकरी

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि बकरी पालन छोटे और सीमांत किसानों के लिए ‘एटीएम’ (ATM) की तरह है। घर में जब भी पैसों की अचानक जरूरत हो, बकरियों को बेचकर तुरंत नकद राशि प्राप्त की जा सकती है। बेतूल जिले का भौगोलिक वातावरण भी बस्तर जैसा ही है, यहाँ भी पर्याप्त जंगल और चरागाह हैं। ऐसे में यहाँ के किसान भी इस ‘जीरो कॉस्ट मॉडल’ को अपनाकर अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं।

Kunal

विश्लेषक के तौर पर, कुणाल लगभग आठ वर्षों से देश भर की ख़बरों पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं। वह हर घटना का गहन अध्ययन करते हैं, ताकि उसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों को उजागर किया जा सके।

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