बैतूल

Betul News : आदिवासी बाहुल्य जिले की सबसे दर्दनाक हकीकत सरकारी सिस्टम फेल, नेत्रहीन दंपत्ति पेड़ों के नीचे जिंदगी काटने मजबूर

बैतूल। यह सबसे बड़ा विडंबनापूर्ण सच है कि बैतूल जैसे आदिवासी बहुल जिले में, जहां हर मंच पर विकास और जनजातीय कल्याण की बातें होती हैं, वहीं एक नेत्रहीन आदिवासी दंपत्ति धाधु उइके और उसकी पत्नी सुशीला वर्षों से पेंशन, राशन और किसी भी सरकारी योजना से वंचित होकर जंगल में लकड़ी बेचकर पेट भरने को मजबूर हैं। योजनाओं के भारी-भरकम दावों के बावजूद इस परिवार तक राहत की एक किरण भी नहीं पहुंच सकी। यह सिर्फ गरीबी नहीं, यह उस सिस्टम की नाकामी है जो आदिवासियों के नाम पर योजनाएं बनाता है, पर एक नेत्रहीन दंपत्ति तक उनका हक पहुंचाने में भी नाकाम साबित होता है।
जिले की ग्राम पंचायत सराड के जंगल में रह रहे नेत्रहीन धाधु उइके अपनी पत्नी सुशीला के सहारे ही जीवन की हर सांस पूरी कर पा रहा है, जबकि सुशीला खुद अपने पति पर ही निर्भर है।आदिवासी बहुल क्षेत्र में जनजातीय समुदाय के लोगों को अब भी ऐसी कठिन परिस्थितियों में जीवन बिताना पड़ रहा है, जहां सहारा भी सहारे का मोहताज है।
बैतूल के जनजातीय क्षेत्र की यह तस्वीर बताती है कि एक नेत्रहीन पति और उसका संघर्षरत जीवनसाथी कैसे एक-दूसरे को थामकर जीने की कोशिश कर रहे हैं। किसी तरह जंगल से लकड़ी बीनकर दो वक्त की रोटी जुटाने वाला यह परिवार योजनाओं और सरकारी दावों से दूर, मूलभूत अधिकारों के बिना जीवन काटने को मजबूर है।

ALSO READ :- इन कर्मचारियों को लगा बड़ा झटका, नहीं मिलेगी सैलरी, जाने वजह

मानवता की मिसाल बनी राष्ट्रीय हिन्दू सेना

जब सिस्टम ने आंखें मूंद लीं, तब राष्ट्रीय हिन्दू सेना ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए परिवार तक पहुंचकर सहारा दिया। राष्ट्रीय हिन्दू सेना के पदाधिकारियों ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए इस परिवार की व्यथा को सुना और तुरंत पहुंचकर मदद का हाथ बढ़ाया। जिला अध्यक्ष अनुज राठौर ने बताया कि जंगल में ऐसे कई परिवार हैं जिन्हें उनके अधिकार नहीं मिल रहे। प्रदेश अध्यक्ष दीपक मालवीय, प्रदेश संयोजक पवन मालवीय, प्रांत सह संगठन मंत्री शुभम इगले, जनपद पंचायत सदस्य अखिलेश वाघमारे, समाजसेवी गोलू उघड़े, रूपेश साहू, लिलाधर पटेल, सत्यम विश्वकर्मा और युगल नागले मौके पर पहुंचे और परिवार की दुर्बल हालात की जानकारी ली।

राष्ट्रीय जनजाति आयोग और कलेक्टर को लिखेंगे पत्र

राष्ट्रीय हिन्दू सेना ने घोषणा की है कि इस नेत्रहीन परिवार के हक के लिए अब लड़ाई लड़ी जाएगी। संगठन ने बताया कि वे राष्ट्रीय जनजाति आयोग को पत्र लिखकर पूरे मामले से अवगत कराएंगे और जिला कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी से मिलकर कार्रवाई की मांग करेंगे ताकि जिनके नाम काटे गए हैं, वे जिम्मेदार अधिकारी चिन्हित किए जाएं और परिवार को तुरंत योजनाओं का लाभ मिले।

लकड़ी बेचकर कर रहे गुजारा

राष्ट्रीय हिन्दू सेना के प्रदेश अध्यक्ष दीपक मालवीय का कहना है कि जहां सरकार की योजनाएं कहती हैं कि नेत्रहीनों को पेंशन, अनाज और सुविधा मिलेगी, वहीं इस परिवार की थाली पिछले डेढ़ वर्ष से खाली है और उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, समग्र आईडी सब होने के बावजूद भी उन्हें उनका हक नहीं मिल रहा।

नेत्रहीन धाधु उइके उम्र लगभग 55 वर्ष, अपनी पत्नी सुशीला के साथ जंगल में बने एक कच्चे झोपड़े में रहता है। न बिजली, न पानी, न सुरक्षा, सिर्फ पेड़ों के बीच एक टपकती छप्पर और महीनों से भरी पीड़ा। पेंशन बंद हो चुकी है, मुफ्त अनाज बंद हो चुका है और जीवन का एकमात्र सहारा अब जंगल में लकड़ी बिनकर बेचना ही है। दोनों पति-पत्नी 7 किलोमीटर पैदल चलकर खेड़ी सांवलीगढ़ पहुंचते हैं ताकि किसी तरह लकड़ी का गट्ठा बेचकर दिन की भूख मिटा सकें।

व्यवस्था की विफलता का जीता जागता उदाहरण

बुजुर्ग दंपत्ति ने ग्राम पंचायत को बार-बार जानकारी दी कि पेंशन बंद है, अनाज बंद है और जीवन बेसहारा हो गया है। लेकिन न पंचायत से समाधान मिला, न विभाग के अधिकारियों से। जिन लोगों ने उनका नाम योजनाओं से कटवाया, उन पर कार्रवाई की मांग ग्रामीणों ने उठाई है। इसी लापरवाही ने इन्हें जंगल पर निर्भर कर दिया है।

Some Important Link

Whatsapp GroupClick Here
Home PageClick Here

Kunal

विश्लेषक के तौर पर, कुणाल लगभग आठ वर्षों से देश भर की ख़बरों पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं। वह हर घटना का गहन अध्ययन करते हैं, ताकि उसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों को उजागर किया जा सके।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button